आलोचकों को जावेद अख्तर का जवाब: ‘पूरी दुनिया में हिंदू जनसमुदाय सबसे सज्जन और सहिष्णु बहुसंख्यक समाज है, हिंदुस्तान कभी अफगानिस्तान नहीं बन सकता…’

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  • जावेद अख्तर | विवाद | उत्तर जावेद अख्तर द्वारा | हिंदू आबादी पूरी दुनिया में सबसे सभ्य और सहिष्णु बहुसंख्यक समाज है और भारत कभी भी अफगानिस्तान समाचार और अपडेट नहीं बन सकता है

मुंबई4 मिनट पहले

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3 सितंबर 2021 को जब मैंने एनडीटीवी को इंटरव्यू दिया था, तो मुझे मालूम नहीं था कि मेरी बातों पर इस तरह की तीखी प्रतिक्रिया पैदा होगी। एक तरफ कुछ लोगों ने बड़े कड़े शब्दों में अपनी नाराजगी और गुस्से का इजहार किया है और दूसरी तरफ देश के हर कोने और इलाके से लोगों ने मेरी बात की तस्दीक की है। मेरे नजरिए से सहमति जताई है। मैं उन सब का शुक्रिया अदा करना चाहूंगा। पर उससे पहले मैं उन आरोपों और अभियोगों का जवाब देना चाहूंगा, जिन्हें मेरे इंटरव्यू से नफरत करने वालों ने मुझ पर लगाया है। क्योंकि इलजाम लगाने वाले हर एक इंसान को अलग-अलग जवाब देना संभव नहीं है। मैं यहां एक साथ जवाब दे रहा हूं।

मेरे आलोचकों का इलजाम है कि मैं हिंदू दक्षिणपंथियों की आलोचना तो करता हूं, मगर कभी मुस्लिम उग्रपंथियों के खिलाफ नहीं बोलता। उनका अभियोग है कि मैं तीन-तलाक, पर्दे-हिजाब और मुसलमानों के दूसरे पिछड़ेपन के दस्तूरों के बारे में कभी कुछ नहीं बोलता। मुझे कोई आश्चर्य नहीं कि इन लोगों को मेरे बरसों से किये गए कामों का जरा भी इल्म नहीं है। आखिरकार मैं इतना महत्वपूर्ण व्यक्ति तो नहीं हूं कि सब को मेरे क्रियाकलापों की खबर हो जो मैं लगातार करता रहा हूं।

दरअसल सचाई यह है कि पिछले दो दशक में दो बार मुझे पुलिस की सुरक्षा दी गयी, क्योंकि मुझे मुस्लिम चरमपंथियों की ओर से जान से मारने की धमकियां दी जा रहीं थीं। पहली बार यह तब हुआ जब मैंने ‘तीन तलाक’ का पुरजोर विरोध किया था। मैंने जब इसकी खिलाफत की, तब यह विषय राष्ट्र के सामने उछला भी नहीं था। किंतु उसी समय से मैं, ‘मुस्लिम्स फॉर सेक्युलर डेमोक्रेसी’ नाम के संगठन के साथ भारत के बहुत से शहरों– जैसे हैदराबाद, इलाहाबाद, कानपुर, अलीगढ़ जाकर इस पुरातनपंथी रूढ़ी के खिलाफ बोल रहा था। इसका नतीजा यह हुआ कि मुझे जान की धमकियां मिलने लगीं और मुंबई के एक अखबार ने उन धमकियों को अपने एक अंक में साफ-साफ दोहराया भी। उन दिनों के मुंबई के पुलिस कमिश्नर ए.एन. रॉय ने उस अखबार के संपादक और प्रकाशक को तलब करके यह कहा कि अब अगर मुझ पर कोई हिंसक हमला हुआ, तो उसका जिम्मेदार मुंबई पुलिस उस अखबार को ही मानेगी।

2010 में एक टीवी चैनल पर एक जाने-माने मुस्लिम मौलाना कल्बे जवाद से मेरा वाद-विवाद हिजाब-बुर्के की सड़ी-गली परंपरा के बारे में हुआ। उसके बाद वो मौलाना साहब मुझसे इतने नाराज हो गए कि कुछ ही दिनों में लखनऊ में मेरे पुतले जलाए जाने लगे और मुझे मौत की धमकियां मिलने लगीं। उस वक्त फिर से मुझे मुंबई पुलिस ने सुरक्षा कवच दिया। इसलिए मुझ पर यह इलजाम कि मैं चरमपंथी मुसलमानों के खिलाफ खड़ा नहीं होता, सरासर गलत है।

कुछ ने मुझ पर तालिबान को महिमामंडित करने का आरोप लगाया है। इससे अधिक झूठ और बेतुकी कोई बात हो ही नहीं सकती। तालिबान और तालिबानी सोच के लिए मेरे पास निंदा और तिरस्कार के अलावा कुछ और है ही नहीं। मेरे एनडीटीवी साक्षात्कार से एक सप्ताह पूर्व, 24 अगस्त को मैंने अपने ट्वीट में लिखा था, “यह चौंकाने वाली बात है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के दो सदस्यों ने अफगानिस्तान में बर्बर तालिबान के काबिज होने पर खुशी जताई है। हालांकि संगठन ने खुद को इस बयान से दूर रखा है, किंंतु इतना काफी नहीं है और यह जरूरी है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस विषय पर अपना दृष्टिकोण साफ करे।”

मैं यहां अपनी बात को दोहरा रहा हूं, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि हिंदू दक्षिणपंथी लोग इस झूठ के परदे के पीछे छिपें कि मैं मुस्लिम संप्रदाय की दकियानूसी पिछड़ी प्रथाओं के विरोध में खड़ा नहीं होता।

उन्होंने मुझ पर हिंदुओं और हिंदू-धर्म की अवमानना करने का अभियोग भी लगाया है। इस आरोप में रत्ती भर भी सच नहीं है। सच यह है कि अपने इंटरव्यू में मैंने साफ कहा है कि पूरी दुनिया में, “हिंदू जनसमुदाय सबसे सज्जन और सहिष्णु बहुसंख्यक समाज है.” मैंने इस बात को बार-बार दोहराया है कि हिन्दुस्तान कभी अफगानिस्तान जैसा नहीं बन सकता क्योंकि भारतीय लोग स्वभाव से ही अतिवादी नहीं हैं और मध्यमार्ग और उदारता हमारी नस-नस में समाई है। आपको हैरानी होगी कि मेरे यह मानने और कहने के बावजूद क्यों कुछ लोग मुझे नाराज हैं? इसका उत्तर यह है कि मैंने साफ शब्दों में हर प्रकार के दक्षिणपंथी-अतिवादियों, कट्टरपंथियों और धर्मांध लोगों की भर्त्सना की है, फिर वो चाहे जिस धर्म-मजहब-पंथ के हों। मैंने जोर देकर कहा है कि धार्मिक-कट्टरवादी सोच चाहे जिस रंग की हो उसकी मानसिकता एक ही होती है।

हां, मैंने अपने साक्षात्कार में संघ और उसके सहायक संगठनों के प्रति अपनी शंका जाहिर की है। मैं हर उस सोच के खिलाफ हूं जो लोगों को धर्म-जाति-पंथ के आधार पर बांटती हो और मैं हर उस उस व्यक्ति के साथ हूं, जो इस प्रकार के भेदभाव के खिलाफ हो। शायद इसीलिए सन 2018 में देश के सबसे पूज्य-मान्य मंदिरों में से एक, काशी के ‘संकट मोचन’ हनुमान मंदिर ने मुझे आमंत्रित कर ‘शांति दूत’ की उपाधि दी और मुझ जैसे ‘नास्तिक’ को मंदिर में व्याख्यान देने का दुर्लभ सौभाग्य भी दिया।

कुछ लोग मेरी इस बात से नाखुश हैं कि मैंने अपने इंटरव्यू में जिक्र किया है कि एम.एस. गोलवलकर ने नाजियों और अल्पसंख्यकों से निपटने के नाजी तरीकों की भी तारीफ की है। श्री गोलवलकर 1940 से 1973 तक संघ के मुखिया थे। उन्होंने दो पुस्तकें भी लिखीं थी- “वी ऑर अवर नेशनहुड डिफाइंड” और “अ बंच ऑफ थॉट्स”। दोनों किताबें इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। पिछले कुछ समय से पहली किताब के बारे में कहा जाने लगा है कि यह गुरुजी की किताब नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि काेई भी उसमें लिखी बातों का समर्थन नहीं कर पायेगा। उनका कहना है कि गलती से गुरूजी का नाम उस किताब से जुड़ गया। हालांकि कई वर्षों से उसके बहुत संस्करण छपते रहे और तब किसी ने कोई बात नहीं की।

“वी ऑर अवर नेशनहुड डिफाइंड” सन 1939 में प्रकाशित हुई थी और स्वयं गुरूजी सन 1973 तक संसार में विद्यमान थे और 34 वर्षों में उन्होंने कभी इस पुस्तक का खंडन नहीं किया। इसका मतलब है कि अब इस किताब का खंडन केवल राजनीतिक मजबूरी है। इस किताब से एक उद्धरण देखिये…

“वी ऑर अवर नेशनहुड डिफाइंड” (पृष्ट 34-35; पृष्ठ 47-48)

“अपनी नस्ल और संस्कृति को विशुद्ध रखने के लिए जर्मनी नें विधर्मी यहूदियों का सफ़ाया करके दुनिया को अचंभित कर दिया। अपनी नस्ल-प्रजाति पर गर्व का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है जर्मनी। जर्मनी ने यह भी सिद्ध कर दिया कि मूल से ही विपरीत नस्लों और संस्कृतियों का साथ रहना और एक होना कितना असंभव है। इस सबक से हम भारतीय लोग कितना कुछ सीख कर लाभान्वित हो सकते हैं….

“भारत में रह रहे विदेशी नस्ल के लोगों (क्रिस्तानों और मुसलमानों) को या तो हिन्दू सभ्यता, भाषा और हिन्दू धर्म को सीखना और उसका आदर करना पड़ेगा और यह भी कि हिन्दू जाति और संस्कृति की वो इज्ज़त करें, अर्थात वो हिन्दू राष्ट्र को मानें… और अपनी पृथक पहचान को भूल कर वो हिंदू प्रजाति में समाहित हो जाएं और तभी इस देश में रहें. उन्हें किसी प्रकार के अलग विशेषाधिकारों की बात तो छोड़िये, किसी तरह के नागरिक अधिकार भी नहीं मिलने चाहिए।”

“अ बंच ऑफ थॉट्स” (पृष्ठ 148-164, और 237-238, भाग 2, अध्याय षष्ठम)

“आज भी सरकार में उच्च पदों पर आसीन मुसलमान और दूसरे भी राष्ट्रविरोधी सम्मेलनों में खुले आम बात करते हैं….

“….कई प्रमुख ईसाई मिशनरी पादरियों ने साफ कहा है कि उनका उद्देश्य इस देश को “प्रभु येशु का क्रिस्तान साम्राज्य बनाने का है….”

दोनों उद्धरण अपने आप में स्पष्ट है।

– जावेद अख्तर, मुंबई, 9 सितम्बर 2021

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