आर्थिक अपराध के आरोपियों को हथकड़ी नहीं लगे: संसदीय समिति का प्रस्ताव- इन्हें जेल में रेप-मर्डर के अपराधियों के साथ नहीं रखें

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नई दिल्ली11 मिनट पहले

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संसदीय समिति का मानना है कि हथकड़ी को कुछ खास तरह के जघन्य अपराधियों के लिए इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि वे भागें नहीं और गिरफ्तारी के दौरान पुलिस अफसर सुरक्षित रहें। (फाइल फोटो)

गृह मामलों की संसदीय स्थाई समिति ने प्रस्ताव रखा है कि आर्थिक अपराध (economic offenders) के आरोपियों को हथकड़ी ना लगाई जाए। साथ ही इन आरोपियों को जेल में जघन्य अपराधियों (रेप-मर्डर करने वाले) के साथ ना रखा जाए।

गृह मामलों की इस संसदीय स्थाई समिति के अध्यक्ष भाजपा सांसद बृज लाल हैं। समिति ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में आरोपी के पुलिस कस्टडी में पहले 15 दिन रहने के दौरान कुछ बदलावों की सिफारिश की है।

लोकसभा में 11 अगस्त को गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS-2023), भारतीय न्याय संहिता (BNS-2023) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA-2023) इन तीन बिलों को पेश किया था। ये तीनों बिल कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर एक्ट (CrPC) 1898, इंडियन पीनल कोड (IPC) 1860 और इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 का स्थान लेंगे।

इकोनॉमिक ऑफेंडर्स को हथकड़ी क्यों ना लगाई जाए?
संसदीय समिति का मानना है कि हथकड़ी को कुछ खास तरह के जघन्य अपराधियों के लिए इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि वे भागें नहीं और गिरफ्तारी के दौरान पुलिस अफसर सुरक्षित रहें।

समिति को ये भी लगता है कि आर्थिक अपराधों के आरोपी जघन्य अपराधियों (Heinous Crimes) की कैटेगरी में नहीं आते। दरअसल, आर्थिक अपराध में अपराधों की एक लंबी शृंखला शामिल है, जिसमें छोटे से लेकर गंभीर अपराध तक शामिल हैं। और इसलिए इस श्रेणी के अंतर्गत आने वाले सभी मामलों में हथकड़ी लगाना सही नहीं हो सकता।

बात उन 3 कानूनों की, जिनमें बदलाव किया गया

3 विधेयकों से क्या बदलाव होगा?

  • कई धाराएं और प्रावधान अब बदल जाएंगे। IPC में 511 धाराएं हैं, अब 356 बचेंगी। 175 धाराएं बदलेंगी। 8 नई जोड़ी जाएंगी, 22 धाराएं खत्म होंगी।
  • इसी तरह CrPC में 533 धाराएं बचेंगी। 160 धाराएं बदलेंगी, 9 नई जुड़ेंगी, 9 खत्म होंगी। पूछताछ से ट्रायल तक वीडियो कॉन्फ्रेंस से करने का प्रावधान होगा, जो पहले नहीं था।
  • सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब ट्रायल कोर्ट को हर फैसला अधिकतम 3 साल में देना होगा।
  • देश में 5 करोड़ केस पेंडिंग हैं। इनमें से 4.44 करोड़ केस ट्रायल कोर्ट में हैं। इसी तरह जिला अदालतों में जजों के 25,042 पदों में से 5,850 पद खाली हैं।
  • तीनों बिल फिलहाल संसदीय कमेटी के पास हैं। इसके बाद ये लोकसभा और राज्यसभा में पास किए जाएंगे।

​​​समझिए 3 बड़े बदलाव…

  • राजद्रोह नहीं, अब देशद्रोह: ब्रिटिश काल के शब्द राजद्रोह को हटाकर देशद्रोह शब्द आएगा। प्रावधान और कड़े किए। अब धारा 150 के तहत राष्ट्र के खिलाफ कोई भी कृत्य, चाहे बोला हो या लिखा हो, या संकेत या तस्वीर या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से किया हो तो 7 साल से उम्रकैद तक सजा संभव होगी। देश की एकता एवं संप्रभुता को खतरा पहुंचाना अपराध होगा। आतंकवाद शब्द भी परिभाषित। अभी IPC की धारा 124ए में राजद्रोह में 3 साल से उम्रकैद तक होती है।
  • सामुदायिक सजा: पहली बार छोटे-मोटे अपराधों (नशे में हंगामा, 5 हजार से कम की चोरी) के लिए 24 घंटे की सजा या एक हजार रु. जुर्माना या सामुदायिक सेवा करने की सजा हो सकती है। अभी ऐसे अपराधों पर जेल भेजा जाता है। अमेरिका-UK में ऐसा कानून है।
  • मॉब लिन्चिंग: मौत की सजा का प्रावधान। 5 या ज्यादा लोग जाति, नस्ल या भाषा आधार पर हत्या करते हैं तो न्यूनतम 7 साल या फांसी की सजा होगी। अभी स्पष्ट कानून नहीं है। धारा 302, 147-148 में कार्रवाई होती है।

4 साल की चर्चा के बाद हुए हैं ये बदलाव
सरकार की ओर से कहा गया था कि 18 राज्यों, 6 केंद्र शासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 22 हाई कोर्ट, न्यायिक संस्थाओं, 142 सांसदों और 270 विधायकों के अलावा जनता ने भी इन विधेयकों को लेकर सुझाव दिए हैं। चार साल की चर्चा और इस दौरान 158 बैठकों के बाद सरकार ने बिल को पेश किया है। इन बदलावों के लिए पहली बैठक सितंबर 2019 में पार्लियामेंट लाइब्रेरी के रूम नंबर जी-74 में हुई थी। कोरोना के दौरान एक साल तक इसमें कोई प्रगति नहीं हुई थी।

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