आर्टिकल 370 पर सुनवाई का 11वां दिन: CJI ने केंद्र से कहा- पता लगाएं, कोर्ट में दलीलें देने वाले लेक्चरर को सस्पेंड क्यों किया गया

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नई दिल्ली3 मिनट पहले

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सुप्रीम कोर्ट में सोमवार (28 अगस्त) को आर्टिकल 370 पर 11वें सुनवाई जारी है। आज की सुनवाई शुरू होते ही सबसे पहले CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने जम्मू-कश्मीर के एजुकेशन विभाग से सस्पेंड किए गए लेक्चरर जहूर अहमद भट के बारे में बात की।

CJI ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को निर्देश दिया कि वे जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा से बात करें और पता लगाएं कि आर्टिकल 370 हटाए जाने के खिलाफ कोर्ट में दलीलें देने के कुछ दिन बाद ही भट को पद से क्यों हटाया गया।

याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट को इस बात की जानकारी दी थी कि जहूर भट 23 अगस्त को कुछ देर के लिए कोर्ट आए थे और 25 अगस्त को उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। इस पर CJI ने चिंता जाहिर की कि कहीं जहूर से बदला लेने की नीयत से तो ऐसा नहीं किया गया है।

बुधवार को कोर्ट में दलीलें दीं, शुक्रवार को J&K एजुकेशन विभाग ने सस्पेंड किया
पिछले हफ्ते बुधवार (23 अगस्त) को पॉलिटिकल साइंस के सीनियर लेक्चरर जहूर भट ने पांच जजों की संवैधानिक बेंच के सामने पेश होकर आर्टिकल 370 हटाए जाने के खिलाफ अपनी दलीलें दी थीं।

दो दिन बाद शुक्रवार (25 अगस्त) को जम्मू-कश्मीर एजुकेशन विभाग ने जम्मू-कश्मीर गवर्नमेंट एम्पलॉयीज कंडक्ट रूल्स, जम्मू-कश्मीर सिविल सर्विस रेगुलेशंस और जम्मू-कश्मीर लीव रूल्स का उल्लंघन करने के चलते भट को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड करने का आदेश जारी किया।

एजुकेशन डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल सेक्रेटरी की तरफ से जारी किए इस ऑर्डर में कहा गया कि सस्पेंशन की अवधि में आरोपी डायरेक्टोरेट ऑफ स्कूल एजुकेशन जम्मू के ऑफिस से अटैच रहेंगे।

कोर्ट रूम लाइव…

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता: CJI की बात पर तुषार मेहता ने कहा कि जहूर को सस्पेंड किए जाने का जरूर कोई और कारण होगा। उनके साथ कुछ और मुद्दे भी हैं।

कपिल सिब्बल: अगर ऐसा है तो उन्हें इस कोर्ट में दलील देने से पहले सस्पेंड क्यों नहीं किया गया। ये ठीक नहीं है। हमारे लोकतंत्र को ऐसे तो काम नहीं करना चाहिए।

CJI: अगर कोई और वजह है तो अलग बात है। लेकिन, उनकी इस कोर्ट में पेशी और उनके सस्पेंशन के बीच समय का ज्यादा फर्क नहीं है।

जस्टिस एसके कॉल: मेहता जी, दलीलों और ऑर्डर के बीच अंतराल कम है….

तुषार मेहता: टाइमिंग तो वाकई सही नहीं है, मैं अपनी बात वापस लेता हूं।

जस्टिस गवई: अगर ये पेशी के दौरान हुआ है, तो ये बदला लेने या सजा देने के लिए उठाया गया कदम हो सकता है। आजादी की भावना को क्या हुआ?

इसके बाद तुषार मेहता ने आर्टिकल 370 से जुड़ी याचिकाओं पर दलीलें देना शुरू किया…

इससे पहले 10 दिन हुई सुनवाई में क्या-क्या हुआ, जानें…

24 अगस्त- SG मेहता ने कहा- जम्मू-कश्मीर इकलौती रियासत थी, जिसका संविधान था और वो भी गलत

10वें दिन की सुनवाई हो रही है। इसमें सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि जम्मू-कश्मीर इकलौती रियासत थी, जिसका संविधान था और वो भी गलत था। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के 4 प्रतिनिधि थे, जिनमें लेफ्टिनेट शेख अब्दुल्ला भी थे। कई रियासतों ने भारत के संविधान को स्वीकार करने में रजामंदी दिखाई, जबकि जम्मू-कश्मीर ने कहा कि हम संविधान बनाने में भागीदारी करेंगे। संविधान बनाते समय ‘एकसमान स्थिति’ का लक्ष्य था। संघ के एक हिस्से को बाकी सदस्यों को मिले अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। पूरी खबर यहां पढ़ें…

23 अगस्त- केंद्र ने कहा- नॉर्थ-ईस्ट से नहीं छीनेंगे स्पेशल स्टेटस: याचिकाकर्ता ने जताई थी आशंका, CJI बोले – जब केंद्र गारंटी दे रहा, तो हमें संदेह कैसा

केंद्र ने 9वें दिन की सुनवाई (23 अगस्त) के दौरान सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसका नॉर्थ-ईस्ट राज्यों को मिले स्पेशल स्टेटस को खत्म करने का कोई इरादा नहीं है। केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वकील मनीष तिवारी की दलीलों के जवाब में यह बात कही। दरअसल तिवारी ने कहा था, जम्मू-कश्मीर पर लागू संविधान के भाग 21 में निहित प्रावधानों के अलावा नॉर्थ-ईस्ट को नियंत्रित करने वाले अन्य विशेष प्रावधान भी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- जब केंद्र ने कहा है कि उसका ऐसा कोई इरादा नहीं है, तो हमें संदेह कैसा? पूरी खबर पढ़ें…

22 अगस्त- याचिकाकर्ता की दलील – 1957 में जम्मू-कश्मीर का संविधान बनने तक था आर्टिकल 370

आर्टिकल 370 की सुनवाई के 8वें दिन, याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील दिनेश द्विवेदी ने तर्क दिया- कश्मीर में जो आर्टिकल 370 लागू की गई वह 1957 में जम्मू-कश्मीर का संविधान बनने तक थी। संविधान सभा भंग होते ही यह अपने आप खत्म हो गई।

इस पर CJI ने कहा- आर्टिकल 370 की ऐसी कौन सी विशेषताएं हैं जो दर्शाती हैं कि जम्मू-कश्मीर संविधान बनने के बाद इसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। इसका मतलब है भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर पर लागू होने के मामले में 1957 तक ही स्थिर रहेगा। इसलिए, आपके अनुसार, भारतीय संविधान में कोई भी आगे का विकास जम्मू-कश्मीर पर बिल्कुल भी लागू नहीं हो सकता है। इसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है? पढ़ें पूरी खबर…

17 अगस्त: चीफ जस्टिस और एडवोकेट दवे के बीच आर्टिकल 370 के अस्तित्व को लेकर चर्चा

PDP चीफ महबूबा मुफ्ती भी 16 अगस्त को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में मौजूद रहीं।

PDP चीफ महबूबा मुफ्ती भी 16 अगस्त को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में मौजूद रहीं।

आर्टिकल 370 की सुनवाई के सातवें दिन, सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे, शेखर नाफड़े और दिनेश द्विवेदी ने पीठ के समक्ष अपनी दलीलें रखीं। दवे ने दलील दी कि आर्टिकल 370 को आर्टिकल 370 (3) का इस्तेमाल करके खत्म नहीं किया जा सकता था।

इस पर कोर्ट ने कहा – आर्टिकल 370 को खत्म किए जाने में अगर संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ है तभी इसे चुनौती दी जा सकती है। हम इस आधार पर बहस नहीं कर सकते कि इसको हटाने के पीछे सरकार की मंशा क्या थी। पढ़ें पूरी खबर…​​​​

16 अगस्त: दुष्यंत दवे ने कहा- संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल राजनीतिक उद्देश्यों के लिए नहीं

आर्टिकल 370 की सुनवाई के छठवें दिन जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के वकील राजीव धवन ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में परिवर्तित करते समय संविधान के अनुच्छेद 239ए का पालन नहीं किया गया। अनुच्छेद 239ए के मुताबिक कुछ केंद्र शासित प्रदेशों के लिए स्थानीय विधानसभाओं या मंत्रिपरिषद या दोनों के निर्माण की शक्ति संसद के पास है।

वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए नहीं किया जा सकता। 2019 में सत्तारूढ़ पार्टी ने अपने घोषणापत्र में कहा था- संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया जाएगा। पढ़ें पूरी खबर…

10 अगस्त : कोर्ट ने कहा – यह कहना मुश्किल कि 370 उसे विशेष दर्जा प्रदान करता था
आर्टिकल 370 की सुनवाई के पांचवें दिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अक्टूबर 1947 में पूर्व रियासत के विलय के साथ जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता का भारत को समर्पण पूरा हो गया था, और यह कहना मुश्किल था कि 370 जो उसे विशेष दर्जा प्रदान करता था, स्थायी था। यह नहीं कहा जा सकता है कि जम्मू-कश्मीर में संप्रभुता के कुछ तत्वों को अनुच्छेद 370 के बाद भी बरकरार रखा गया था। पढ़ें पूरी खबर…

9 अगस्त: विलय के समय जम्मू-कश्मीर किसी अन्य राज्य की तरह नहीं था, अलग संविधान था

आर्टिकल 370 की सुनवाई के चौथे दिन सीनियर एडवोकेट सुब्रमण्यम ने कहा क‍ि विलय के समय जम्मू-कश्मीर किसी अन्य राज्य की तरह नहीं था। उसका अपना संविधान था। हमारे संविधान में विधानसभा और संविधान सभा दोनों को मान्यता प्राप्त है। मूल ढांचा दोनों के संविधान से निकाला जाएगा। डॉ. अंबेडकर ने संविधान के संघीय होने और राज्यों को विशेष अधिकार की बात कही थी। पढ़ें पूरी खबर…

8 अगस्त : कपिल सिब्बल बोले- 370 में आप बदलाव नहीं कर सकते, हटाना तो भूल ही जाइए

8 अगस्त को आर्टिकल 370 की सुनवाई के तीसरे दिन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आर्टिकल 370 खुद कहता है कि इसे खत्म किया जा सकता है। इस पर सिब्बल ने जवाब देते हुए कहा था, 370 में आप बदलाव नहीं कर सकते, इसे हटाना तो भूल ही जाइए। फिर CJI ने कहा- आप सही हैं, इसलिए सरकार के पास स्वयं 370 में बदलाव करने की कोई शक्ति नहीं है। सिब्बल बोल- ये व्याख्या (अपने शब्दों में समझाना, इंटरप्रिटेशन) करने वाला क्लॉज है, यह संविधान में संशोधन करने वाला क्लॉज नहीं है। पढ़ें पूरी खबर…

3 अगस्त : सिब्बल बोले – 370 को छेड़ा नहीं जा सकता, जवाब मिला- आर्टिकल का सेक्शन C ऐसा नहीं कहता

आर्टिकल 370 की सुनवाई के दूसरे दिन याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी थी कि आर्टिकल 370 को छेड़ा नहीं जा सकता। इसके जवाब में जस्टिस खन्ना ने कहा कि इस आर्टिकल का सेक्शन (c) ऐसा नहीं कहता। इसके बाद सिब्बल ने कहा, मैं आपको दिखा सकता हूं कि आर्टिकल 370 स्थायी है। इस पर CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, अभी तक जम्मू-कश्मीर की सहमति की आवश्यकता है और अन्य राज्यों के लिए विधेयक पेश करने के लिए केवल विचारों की जरूरत है। पढ़ें पूरी खबर…

2 अगस्त : CJI ने सिब्बल से पूछा – आर्टिकल 370 खुद ही अपने आप में अस्थायी और ट्रांजिशनल है

2 अगस्त को आर्टिकल 370 की सुनवाई के पहले दिन CJI ने याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि आर्टिकल 370 खुद ही अपने आप में अस्थायी और ट्रांजिशनल है। क्या संविधान सभा के अभाव में संसद 370 को निरस्त नहीं कर सकती? इस पर जवाब देते हुए सिब्बल ने कहा था कि संविधान के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर से 370 को कभी हटाया नहीं जा सकता। पढ़ें पूरी खबर..

10 जुलाई को केंद्र ने मामले में नया एफिडेविट दाखिल किया था
इस मामले को लेकर आखिरी सुनवाई 11 जुलाई को हुई थी। इससे एक दिन पहले 10 जुलाई को केंद्र ने मामले में नया एफिडेविट दाखिल किया था। केंद्र ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर 3 दशकों तक आतंकवाद झेलता रहा। इसे खत्म करने का एक ही रास्ता था आर्टिकल 370 हटाना।

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