अगस्त में भारत में आ सकती है कोरोना की तीसरी लहर, सितंबर में पीक आने की उम्मीद: एसबीआई रिपोर्ट

नई दिल्ली: देश में कोरोना की कमजोर होती लहर के बीच इसकी तीसरी लहर को लेकर तरह-तरह की बातें हो रही हैं. कुछ जानकारों का कहना है कि देश में कोरोना की तीसरी लहर पहले से भी ज्यादा गंभीर होगी. वहीं, कुछ का कहना है कि तीसरी लहर में चिंता की कोई बात नहीं है। इस बीच एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट ने तीसरी लहर को लेकर बड़ी भविष्यवाणी की है।

एसबीआई की शोध रिपोर्ट ने अगस्त में तीसरी लहर की भविष्यवाणी की है। यह भी कहा गया है कि इसका चरम सितंबर में होगा। एसबीआई के इस शोध को ‘कोविड-19: द रेस टू फिनिश लाइन’ नाम से प्रकाशित किया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जुलाई के दूसरे सप्ताह में नए मरीजों की संख्या बढ़कर 10 हजार हो जाएगी. भारत में पिछले 24 घंटे में कोरोना के 34 हजार 703 नए मामले सामने आए हैं। गौरतलब है कि 111 दिनों के बाद देश में कम मामले सामने आए हैं।

बढ़ते कर्ज से परिवार बेहाल

महामारी के बीच एक डराने वाली खबर सामने आई है। एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत के परिवार कर्ज के बोझ तले दबे हैं। कोरोना महामारी का लोगों की आय और आर्थिक स्थिति पर भारी प्रभाव पड़ा है, जिससे पारिवारिक स्तर पर कर्ज बढ़ गया है।

एसबीआई रिसर्च की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2020-21 में परिवार पर कर्ज जीडीपी के 37.3 फीसदी पर पहुंच गया है, जबकि पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में यह 32.5 फीसदी था.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि महामारी की दूसरी लहर के चलते चालू वित्त वर्ष में कर्ज का यह अनुपात और बढ़ सकता है। हालांकि, जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से पारिवारिक कर्ज का स्तर बढ़ रहा है। इससे पहले नवंबर 2016 में नोटबंदी लागू की गई थी।

रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2017-18 से चार साल में परिवारों पर कर्ज का स्तर 7.20 फीसदी बढ़ा है. वित्त वर्ष 2017-18 में यह 30.1 प्रतिशत था, जो 2018-19 में बढ़कर 31.7 प्रतिशत, 2019-20 में 32.5 प्रतिशत और 2020-21 में 37.3 प्रतिशत हो गया।

हालांकि, भारत में पारिवारिक ऋण जीडीपी अनुपात अन्य देशों की तुलना में कम है। ब्रिटेन में यह 90 फीसदी, अमेरिका में 79.5 फीसदी, जापान में 65.3 फीसदी, चीन में 61.7 फीसदी है। जबकि मेक्सिको में सबसे कम पारिवारिक ऋण जीडीपी अनुपात 17.4 प्रतिशत है। बढ़ते घरेलू कर्ज का मतलब है कि खपत और स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ने के कारण बचत दर में कमी आई है।

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