नई दिल्ली1 घंटे पहले
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लालकृष्ण आडवाणी 2002 से 2004 तक देश के उपप्रधानमंत्री रहे हैं। (फाइल फोटो)
भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी (96) की तबीयत मंगलवार को एक बार फिर खराब हो गई। उन्हें दिल्ली के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया है। न्यूरोलॉजिस्ट डॉ विनीत सूरी की निगरानी में उनका इलाज चल रहा है।
इससे पहले 26 जून को AIIMS दिल्ली में यूरोलॉजी डिपार्टमेंट की निगरानी में उनका एक छोटा ऑपरेशन हुआ था। अगले दिन उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी। करीब एक हफ्ते बाद रात में अचानक तबीयत बिगड़ने पर उन्हें अपोलो में भर्ती कराया गया था। हालांकि एक दिन बाद ही वे घर आ गए थे।
आडवाणी 31 मार्च को भारत रत्न से सम्मानित हुए
31 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित किया था।
लालकृष्ण आडवाणी को 31 मार्च को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया गया था। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनके घर जाकर भारत रत्न से सम्मानित किया था। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, गृह मंत्री अमित शाह और पूर्व उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू भी मौजूद थे।
प्रधानमंत्री मोदी ने 3 फरवरी को उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा की थी। इससे पहले 2015 में आडवाणी को देश के दूसरे सबसे नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
NDA की जीत के बाद आडवाणी से मिलने पहुंचे थे मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी NDA की जीत के बाद लालकृष्ण आडवाणी से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे।
2024 लोकसभा चुनाव में NDA की लगातार तीसरी बार जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 7 जून को लालकृष्ण आडवाणी से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने आडवाणी को गुलदस्ता भेंट किया था।
लोकसभा चुनाव के नतीजे 4 जून को आए थे। इसमें भाजपा को 240 सीटें मिली थीं। सहयोगी दलों को मिलाकर NDA ने कुल 293 सीटें जीती थीं।
आडवाणी भाजपा के फाउंडर मेंबर, 7वें उप प्रधानमंत्री रहे
आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को कराची में हुआ था। 2002 से 2004 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 7वें उप प्रधानमंत्री रहे। इस दौरान 1998 से 2004 के बीच NDA सरकार में गृहमंत्री भी रहे थे। वे भाजपा के फाउंडर मेंबर्स में शामिल हैं।
आडवाणी का राजनीतिक सफर
आडवाणी की रथ यात्रा, कमान मोदी को मिली थी
आडवाणी ने 1987 में सोमनाथ से बिहार के समस्तीपुर तक की रथ यात्रा निकाली थी। उन्होंने इस यात्रा की जिम्मेदारी मोदी को सौंपी थी।
राम मंदिर आंदोलन के लिए लालकृष्ण आडवाणी ने 63 साल की उम्र में गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली थी। 25 सितंबर 1990 से शुरू हुई इस यात्रा की कमान मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भाजपा के दिवंगत नेता प्रमोद महाजन ने संभाली थी।
यह आडवाणी की रथ यात्रा का ही कमाल था कि 1984 में दो सीट जीतने वाली भाजपा को 1991 में 120 सीटें मिलीं। इतना ही नहीं आडवाणी ने पूरे देश में एक हिन्दूवादी नेता के तौर पर पहचान बनाई। इसके साथ ही भाजपा को मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार जैसे राज्यों में नई पहचान मिली।
हालांकि आडवाणी रथ यात्रा पूरी नहीं कर पाए थे। उन्हें बिहार के समस्तीपुर में 23 अक्टूबर 1990 को अरेस्ट कर लिया गया था।
कट्टर हिंदुत्व का चेहरा रहे आडवाणी
1. मंडल की काट में मंदिर मुद्दा लाए
आडवाणी राम जन्मभूमि आंदोलन में भाजपा का चेहरा बने। 80 के दशक में विश्व हिंदू परिषद ने ‘राम मंदिर’ निर्माण आंदोलन शुरू किया। 1991 का चुनाव देश की सियासत का टर्निंग पॉइंट रहा। भाजपा मंडल कमीशन की काट के रूप में मंदिर मुद्दा लेकर आई और रामरथ पर सवार होकर देश की मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी।
2. आधा दर्जन यात्राएं निकालीं
आडवाणी ने 1990 में सोमनाथ से अयोध्या तक ‘रथ यात्रा’ की। उनके सियासी जीवन में राम रथ यात्रा, जनादेश यात्रा, स्वर्ण जयंती रथ यात्रा, भारत उदय यात्रा, भारत सुरक्षा यात्रा, जनचेतना यात्रा शामिल हैं।
रथयात्रा के दौरान हमेशा मोदी, आडवाणी के साथ रहते थे। फोटो एक रेलवे स्टेशन का जहां आडवाणी कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे हैं।
3. युवा नेताओं की फौज तैयार की
जनसंघ को भाजपा बनाने की यात्रा में सर्वाधिक योगदान लालकृष्ण आडवाणी का रहा। भाजपा की मौजूदा पीढ़ी के 90% से ज्यादा नेता आडवाणी ने ही तैयार किए हैं।
4. जब सबको हैरत में डाल दिया था
आडवाणी ने 1995 में अटल बिहारी वाजपेयी को PM पद का दावेदार बताकर सबको हैरत में डाल दिया। आडवाणी हमेशा वाजपेयी के नंबर दो बने रहे।
5. आरोप लगे तो इस्तीफा दे दिया
आडवाणी का 50 साल से ज्यादा का सियासी जीवन बेदाग रहा। 1996 में आडवाणी सहित विपक्ष के बड़े नेताओं का हवाला कांड में नाम आया। तब आडवाणी ने इस्तीफा देकर कहा कि वे इसमें बेदाग निकलने के बाद ही चुनाव लड़ेंगे। 1996 में वे बेदाग साबित हुए।
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