भगत सिंह की 114वीं जन्मतिथि पर ग्राउंड रिपोर्ट: लाहौर की आबोहवा में अब भी बसते हैं शहीद-ए-आजम, लोग कहते हैं- वे किसी देश-धर्म नहीं, पूरे उपमहाद्वीप के हीरो

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  • लाहौर के माहौल में आज भी रहते हैं भगत सिंह की जन्म तिथि पर विशेष रिपोर्ट, उनकी दास्तां सुनकर बड़े हुए बच्चे; लोग कहते हैं शहीद ए आजम एक राष्ट्र धर्म नहीं है, यह पूरे उपमहाद्वीप का नायक है

एक घंटा पहलेलेखक: लाहौर से भास्कर के लिए नासिर अब्बास

‘हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली, ये मुश्ते-खाक है फानी रहे न रहे…’ यानी ये जिंदगी खत्म हो जाएगी, पर मेरे विचार जिंदा रहेंगे। भगत सिंह द्वारा जेल से अपने भाई को लिखी आखिरी चिट्‌ठी की ये लाइनें आज भी मौजूं हैं। वे 1907 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की तहसील जरनवाला के बंगा चक 105 जी में पैदा हुए थे। इस सूबे में आज भी बच्चे उनकी कहानियां सुनकर बड़े होते हैं। लाहौर में उनसे जुड़ी जगहों पर 114वीं जयंती मनाने की तैयारी शुरू हो गई है।

सैयदा दीप भगत सिंह के दीवानों में से हैं। वे हर साल उनकी जयंती और शहादत दिवस पर कार्यक्रम करती हैं। सैयदा कहती हैं, ‘हम युवा पीढ़ी के दिलों में भगत सिंह को जिंदा रखना चाहते हैं। लाहौर ऐसी जगह है जहां भगत सिंह ने पढ़ाई की और आजादी के लिए फांसी पर झूल गए। यहां की आबोहवा में उनकी विचारधारा का प्रभाव है। उन्होंने पीढ़ियों को अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना सिखाया।’

लोगों के दिलों में बसी हैं भगत सिंह की यादें
यहां ब्रेडलॉफ हॉल हो या इस्लामिया कॉलेज, फव्वारा चौक हो या सेंट्रल जेल… उनकी यादें यहां की इमारतों, किताबों, डाक्युमेंट से लेकर यहां के लोगों के दिलों तक में बसी हैं। ऐसे ही लोगों में से एक हैं, 95 वर्षीय सलीम मलिक। मलिक कहते हैं, ‘भगत सिंह दिलेर और निडर युवा थे। अंग्रेजों की आंखों में आंखें डालकर बात करते थे। वे किसी देश, धर्म के नहीं, पूरे उपमहाद्वीप के हीरो हैं।’

बंटवारे के बाद लुधियाना के मुलापुर गांव से पाकिस्तान विस्थापित हुए 86 वर्षीय चचा अचा कहते हैं, ‘बचपन में मेरे वालिद मुझे भगत सिंह की कहानियां सुनाते थे। लाहौर में उनसे जुड़ी इमारतें दिखाते थे। आज भी सूबे में यह परंपरा कायम है।’ इतिहासकार इकबाल बताते हैं, ‘लाहौर क्रांतिकारी और सुधारवादी आंदोलनों का केंद्र रहा है। शहर के बीचों-बीच बना इस्लामिया काॅलेज स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा रहा।

यहीं भगत सिंह ने ब्रिटिश अफसर जॉन सैंडर्स पर गोली चलाई थी। सेंट्रल जेल में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई। जेल की जगह शादमान चौक बन गया, इसे भगत सिंह चौक भी कहा जाता है।’ भगत सिंह और उनके मित्रों ने कश्मीर बिल्डिंग परिसर के रूम नंबर 69 में शहर की पहली बम फैक्ट्री बनाई थी। बाद में यह बिल्डिंग होटल में तब्दील हो गई। 1988 में उस जगह शॉपिंग प्लाजा बना दिया गया।

भगत सिंह से जुड़ी किताबें-पत्र आज भी सुरक्षित
हम भगत सिंह के यादों को खंगालने आर्काइव विभाग पहुंचे। यहां 1919 में भगत सिंह पर दर्ज एफआईआर, पोस्टमार्टम रिपोर्ट के कागजात व उनके लिखे पत्र हैं। एक पत्र है, जिसमें उन्होंने जेलर से मियांवली से लाहौर जेल भेजने की मांग की थी। यहां ‘बेजुबान दोस्त’, ‘गंगा दास डाकू’ जैसी कुछ किताबें भी हैं।

इन्हें वे जेल में पढ़ा करते थे। आर्काइव डिपार्टमेंट के सचिव ताहिर यूसुफ कहते हैं, ‘भगत सिंह उनमें से हैं, जिनकी वजह से हम खुले आसमान में सांस ले रहे हैं। हमारा विभाग प्रदर्शनी लगाता है। उनसे जुड़े दस्तावेज दिखाए जाते हैं।’

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